
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में स्थापित जनता वैदिक कॉलिज, बड़ौत (बागपत) में संस्कृत भाषा के विकास हेतु स्नातक स्तर पर संस्कृत विभाग की स्थापना वर्ष 1959 में हुई। उस समय यह महाविद्यालय आगरा विश्वविद्यालय आगरा से सम्बद्ध था। सन् 1966 में यह चौ० चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से सम्बद्ध हो गया। डॉ० रामप्रसाद शास्त्री संस्कृत विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। उन्होंने 1959 से 30 जून 1976 तक अनवरत रूप से संस्कृत भाषा और साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की।
डॉ० रामप्रसाद शास्त्री की सेवा निवृत्ति के पश्चात् संस्कृत के प्रख्यात विद्वान् डॉ० वेदपाल ने सन् 1976 में संस्कृत विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। इनके अथक प्रयासों से सन् 1990 में संस्कृत विभाग में शोध कार्य हेतु शोध केन्द्र की स्थापना की गयी। डॉ० वेदपाल जी के निर्देशन में तेरह छात्रों ने पी-एच०डी० की उपाधि प्राप्त की एक छात्रा श्रीमती आभा का शोध-प्रबन्ध मूल्यांकन हेतु विश्वविद्यालय में जमा कराया जा चुका है। समय-समय पर डॉ० वेदपाल जी के द्वारा विभाग में संगोष्ठियाँ भी आयोजित करायी गयी। 30 जून 2011 में डॉ0 वेदपाल सेवा निवृत्त हो गये। 17/06/2022 में आयोग से चयनित श्री शिवपाल जी के द्वारा विभाग का कार्यभार ग्रहण किया है।
महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा वैदिक संस्कृति तथा संस्कृत के संवर्धन तथा पठन-पाठन के लिए 1990 से संस्कृत में शोध कार्य कराया जा रहा है। इसके साथ महाविद्यालय में स्थित यज्ञशाला में प्रत्येक मंगलवार को यज्ञ कार्य किया जा रहा है जिसमें चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के संस्कृत पाठ्यक्रम "कर्मकाण्ड" विषय का अध्ययन किया जाता है। वैदिक संस्कृति के विकास और संवर्धन के लिए "वैदिक शोध संस्थान" को स्थापित किया गया है। संस्कृत विभाग द्वारा छात्र-छात्राओं के अध्ययन के लिए विभिन्न शोध पत्रिकाओं को उपलब्ध कराया जा रहा है।
आर्य जगत् के ख्याति प्राप्त विद्वान् डॉ० वेदपाल का जन्म १ जनवरी १९५१ को हापुड़ जनपद के ततारपुर नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता श्री रघुवीर सिंह तथा माता श्रीमती मोहर कौर थी।
आपने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला से प्राप्त की। उसके पश्चात् आपने हरिद्वार में स्थित गुरुकुल महाविद्यालय, ज्वालापुर से विद्याभास्कर (स्नातक) की उपाधि प्राप्त की और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से परास्नातक की उपाधि प्राप्त कर पी०एच०डी० की शोधोपाधि प्राप्त की।
आपने जनता वैदिक पी०जी० कालेज, बड़ौत (बागपत) में संस्कृत विभागाध्यक्ष पद पर अध्यापन कार्य करते हुए अपने वैदुष्य, शालीनता और सरलता से सभी को प्रभावित किया। पन्द्रह शोध छात्र आपके निर्देशन में पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। आपके लगभग ८० शोध पत्र अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। प्राच्यविद्यानुसन्धानम् षाण्मासिकी शोध पत्रिका विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुदान से १३ वर्षों से प्रकाशित कर रहे हैं। वैयाकरण शास्त्र परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आपने काशिका के प्रथम अध्याय की विस्तृत व्याख्या की है, जो अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में आदर्श व्याख्या ग्रन्थ के रूप में प्रसिद्ध है। आपने प्राचीन वैदिक शृंखला को पोषित करते हुए पारस्करगृह्मसूत्र की कर्कभाष्य सहित विस्तृत व्याख्या की है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के पत्र व्यवहारों का दो भागों में चौदह सौ पृष्ठों में सम्पादन किया है।
गुरुकुल महाविद्यालय ततारपुर की स्थापना में आपके पिताश्री ने सन् १९६५ में भूमिप्रदान कर अविस्मरणीय योगदान दिया है। डॉ० वेदपाल गुरुकुल महाविद्यालय, ततारपुर के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। आप इस संस्था के माध्यम से संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं।
डा० वेदपाल की विशिष्ट संस्कृत सेवा को लक्षित कर उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा वर्ष २०१८ का विशिष्ट पुरस्कार प्रदान किया गया।